घने जंगलों को चीरती रोशनी को देखा हर किसी को। घने जंगलों को चीरती रोशनी को देखा हर किसी को।
मैं जन गण की प्यास, बुझा ल्याऊं खुशहाली। मैं जन गण की प्यास, बुझा ल्याऊं खुशहाली।
हाँ, मैं नदी हूँ। बहती हुई मानों कोई सदी हूँ। हाँ, मैं नदी हूँ। बहती हुई मानों कोई सदी हूँ।
दी हुई आवाज की गूँज, जो आज लौट आई है। दी हुई आवाज की गूँज, जो आज लौट आई है।
कहानियाँ अभी भी अंतहीन हम छोटे से बड़े हो गये हैं। कहानियाँ अभी भी अंतहीन हम छोटे से बड़े हो गये हैं।
वरना मैं तो फिर आ ही रहा हूँ इस बार तेरे उन पहाड़ों पे यार देख ही लूँगा इस बार आख़िर ऐसा क्या ह... वरना मैं तो फिर आ ही रहा हूँ इस बार तेरे उन पहाड़ों पे यार देख ही लूँगा इस बा...